एक सिने प्रेमी का किंग आॅफ रोमांस शाह रुख खान के नाम खुला पत्र

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किंग आॅफ रोमांस शाह रुख खान को सलाम नमस्ते। बुरे वक्त में हर कोई सलाह देने लग जाता है, सही कहा ना। लेकिन, बुरे वक्त की एक अच्छी बात यह भी है कि यह लोगों की पहचान करवाता है। इतना ही नहीं, यदि आदमी बुरे वक्त से लड़कर फिर से चमकने लगता है तो लोग उसको बिग बी के नाम से पुकारने लगते हैं। याद है ना, अमिताभ बच्चन का वक्त, जब बाॅक्स आॅफिस पर फिल्मों ने चलना बंद कर दिया था, और अमिताभ बच्चन आर्थिक तौर पर भी काफी कमजोर हो चुके थे।

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फिर अचानक एक बीपीएल, जिसकी पंचलाइन बिलीव इन यूअरसेल्फ थी’ के विज्ञापन और कौन बनेगा करोड़पति ने अमिताभ बच्चन की खोई हुई चमक लौटा दी थी, और बिग बी के रूप में अमिताभ बच्चन ने एक नये सफर की शुरूआत की, जो अब भी जारी है। यह तो इसलिए याद दिला रहा हूं कि कई बार इंसान रोजमर्रा की जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाता है, वो भूल ही जाता है, ऐसा पहले भी कई बार कईयों के साथ हो चुका है, मैं कोई अपवाद नहीं हूं।

वैसे भी किंग खान आपके जीवन में ऐसे कई वर्ष आए हैं, जब आपकी फिल्में बाॅक्स आॅफिस पर लगातार औंधे मुंह गिरी हैं और फिर अचानक एक बड़ी हिट फिल्म ने सब कुछ ठीक कर दिया।

लेकिन, इस समय मामला कुछ विपरीत है, क्योंकि इस समय स्टारडम महत्व रखने लगी है और आपका पैसा भी बड़े स्तर पर लगने लगा है। पिछले कुछ सालों में हैप्पी न्यू ईयर, दिलवाले, फन और जब हैरी मेट सेजल का बुरी तरह पिट जाना बहुत बुरा है क्योंकि इससे स्टारडम और पैसे दोनों की बर्बादी हुई है। साथ ही दर्शकों का विश्वास भी कम हुआ है क्योंकि हर बार लूटने के बाद एक झटका तो लगता ही है।

अब जब ‘जब मेट हैरी सेजल’ के पिट जाने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ लोग कहने लगे हैं कि शाह रुख खान की फिल्में बाॅक्स आॅफिस पर इसलिए डूब रही हैं, क्योंकि शाह रुख खान को लोग उनकी गतिविधियों के कारण न पसंद करने लगे हैं, तो मेरा पत्र लिखने का मन हुआ।

हो सकता है कि आपके करीबी भी ऐसा मान रहे हैं और आपको विश्वास दिला रहे हों कि आपकी फिल्में तो शानदार हैं, लेकिन, लोग आपको न पसंद करने लगे हैं। तो उनसे कह दूं कि ऐसा कुछ नहीं है।

यदि ऐसा होता तो यकीन करो आमिर खान की पीके और दंगल कभी भी बाॅक्स आॅफिस पर कमाल न कर सकती। पीके का तो विषय ही ऐसा था कि उस फिल्म का विरोध आसानी से हो सकता था। लेकिन, जनता अच्छे और बुरे में फर्क समझती है। इसलिए इस तर्क को तो अपने आस पास भी आने मत दें कि दर्शकों ने आपकी फिल्मों को केवल इसलिए नकार दिया कि आप के प्रति उनके मन में गुस्सा है।

मुझे लगता है कि इस समय आपको अपनी पुरानी फिल्मों की चयन प्रक्रिया पर ध्यान देने की जरूरत है और सिनेमा प्रेमियों की नब्ज को पकड़ने की जरूरत है। यदि आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो आपकी अगली फिल्म ब्लाॅकबस्टर होगी।

मैं ऐसा क्यों कहा रहा हूं? सवाल तो वाजिब है। दरअसल, हाल ही में आप ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि मैंने इम्तियाज अली की कोई फिल्म नहीं देखी। जब मेरे पास पटकथा आई तो मैंने किरदार में कुछ बदलाव करने की बात कही, जो हुआ। यकीनन मानिये, आपका किरदार और अभिनय दोनों ही शानदार थे, लेकिन, फिल्म निर्माण में काफी कमियां थी, बोरियत भरी पटकथा, दो लोगों पर फिल्म का केंद्र होना, और किरदारों मौखिक रूप से तो बयान कर रहे थे, लेकिन, उनके एहसास और जज्बात उसको बयान करने में असफल थे।

एक फिल्म अवार्ड समारोह में आप ने ही कहा था, फिल्म कहानी, स्क्रीन प्ले और डायलाॅग के बल पर चलती है, तो जब हैरी मेट सेजल को एक बार फिर से देखें, तो आप तीनों चीजों की कमी महसूस करेंगे। इसके अलावा जो सबसे बड़ी भूल हुई, वो है कि आप ने इम्तियाज अली की फिल्में नहीं देखी, यदि देखी होती तो इंकार जरूर करते। इस फिल्म का नाम रणबीर कपूर ने चुटकी में सुझा दिया होगा क्योंकि इम्तियाज अली इससे पहले जब वी मेट बना चुके हैं। और इसकी कहानी के एक किरदार में जब वी मेट की झलक दिखती है और कहानी कहना भी वही चाहती है कि लोग एक दूसरे को अचानक मिलते हैं, जिसको नियति कहा जाता है।

फिल्म रईस की बात करें तो फिल्म अच्छी थी, लेकिन, उतना कारोबार न कर सकी, जितना शाह रुख खान का स्टारडम माना जाता है। उसका भी एक मुख्य कारण है कि उसमें आपका किरदार, एक ऐसे व्यक्ति का था, जो कुछ लोगों के लिए मसीहा हो सकता है, लेकिन, एक बड़े वर्ग की नजर में वो हमेशा विलेन रहेगा। लोग क्यों ऐसे व्यक्ति का साहस देखना चाहेंगे, जिसका उदय लोगों की जिंदगियां छीनने से हुआ हो।

ऐसा भी नहीं कि फिल्म मुस्लिम किरदार होने के कारण ठुकरा दी गई, अगर ऐसा होता तो चक्क दे इंडिया का कबीर खान आज भी लोगों के जेहन में क्यों हैं? मैं बताता हूं क्योंकि वो फिल्म एक उत्साह प्रदान करती है, वो फिल्म एक सार्थक फिल्म है।

इसके अलावा जब शाह रुख खान यशराज चोपड़ा के साथ रोमांटिक फिल्में करता था तो उसमें एक फीलिंग होती थी, किरदार को बोलकर कहना नहीं पड़ता था कि मैं ऐसा हूं, मैं वैसा हूं। फिल्म के पास एक कहानी, बेहतरीन स्क्रीन प्ले और संवाद होते थे। यशराज चोपड़ा की फिल्मों में दोहराव नहीं मिलता था। उनकी कहानी में एक पकड़ एक जकड़ होती थी, जो जब हैरी मेट सेजल में तो बिलकुल नहीं।

आदित्य चोपड़ा की बेफ्रिके पिटी, उसके बाद करण जौहर की ओके जानु पिटी, उससे पहले भी नील एन ​निक्की जैसी फिल्में पिट चुकी हैं, क्योंकि उनमें ​फीलिंग एक अपनेपन का अभाव रहता है। और इनकी मार्क क्षमता केवल अर्बन क्षेत्रों के मल्टीप्लेक्सों तक रहती है, तो कितना कारोबार कर सकती हैं, जरा सोचिये।

बस कुछ समय शांत बैठकर सोचने की जरूरत है। फिल्म चयन के समय दर्शकों के मूड और फिल्म की पटकथा को टटोलना जरूरी है। कुछ लोग कह रहे हैं कि किंग खान को इस उम्र में इश्क मुश्क वाली फिल्में नहीं करनी चाहिये। एक अभिनेता उम्र की सीमाएं तोड़कर अभिनय करता है और करना भी चाहिये।

बस फिल्म चयन के समय थोड़ा सा समय ज्यादा निकालें, ताकि प्रचार के समय पैसा और समय बर्बाद करने की जरूरत न पड़े। आमिर खान की बरसों से एक रीत है कि वो अपनी फिल्म को रिलीज करने से पहले कुछ लोगों को दिखाता है, उनके नजरिये से भी फिल्म देखने की कोशिश करता है।

हाल ही में जब ऋतिक रोशन का कैरियर पटरी से उतरने लगा तो अनुभवी पिता ने कम बजट में काबिल जैसी शानदार फिल्म बनाकर रईस के सामने उतारकर उसकी खोई हुई स्टार चमक वापस लौटाई, इसको कहते हैं रणनीति।

चलते चलते मैं तो बस इतना कहूंगा कि आपकी फिल्में इसलिए नहीं पिट रही कि लोग आप से नफरत करते हैं, बल्कि इसलिए पिट रही हैं, उनको वो नहीं मिल रहा, जो शाह रुख खान से वो चाहते हैं। फिल्म बनाते समय उसकी मार्क क्षमता का ध्यान रखें, और बजट उसके अनुसार ही बनाएं। अगर समझ न आए तो अक्षय कुमार से सीख लें। अक्षय कुमार की औसतन फिल्म भी 45 से 60 करोड़ का कारोबार करेगी, लेकिन, अक्षय कुमार की​ फिल्मों का बजट 25 से 32 करोड़ के बीच ही रहने लगा है।

कुलवंत हैप्पी