Web Series Review : हुमा कुरैशी की वेब सीरीज ‘लैला’

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कल रात टुकड़े-टुकड़े में हिटलर, तालीबान औऱ अमिष की मेलुहा को देखा…

“सीरीज पानी-प्रदूषण-गंदगी की जो बात कह रही है, उसे जरूर सुने औऱ अपने आस-पास का पर्यावरण बचाने की कोशिश करें….अन्यथा अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा। “

कहीं का ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा…किताब को वेब सीरीज में ढ़ालना शायद कठिन हो लेकिन दीपा मेहता “अर्थ-फायर-वॉटर” प्रकृति के तीन एलीमेंट को लेकर काम करने वाली लीक से हटकर व्यक्तित्व से मैं काफी उम्मीदें लगा बैठी थी जो धराशायी हुईं। वेब सीरीज का एक भी सीन ऐसा नहीं लगता कि हम 2019 नहीं 2047 में जी रहे हो…गंदी बस्तियां औऱ बड़े अपार्टमेंट, थोड़ा सा टैक्नो गिमिक दिखाकर सिर्फ 27 साल का अंतर पाटा नहीं जा सकता। फिर व्यवसायिकता के लिए जिस तरह की भाषा का उपयोग किया गया है…मुझे नहीं लगता ‘प्रयाग अकबर’ ने इस तरह की भाषा लिखी होगी। किताब आर्डर कर दी है….असलियत जानने के लिए…सिर्फ वेब सीरीज बेचने के लिए यदि भाषा के निम्न रूप का उपयोग किया गया है तो दीपा मेहता ने बाकियों का तो पता नहीं मेरी नजर में लीक से हटकर काम करने वाली महिला का दर्जा खो दिया….जिनके नाम और किताब के जिक्र के कारण मैंने एक ही दिन में पहले 6 एपीसोड पूरे किए…

पहला एपीसोड….घृणित गालियों के स्वरूप में स्त्रित्व का बार-बार मानमर्दन करने वाले उच्चारण ..मिर्जापुर या सीक्रेड गेम्स की तरह सिर्फ बेचेने के लिए भद्दी -भद्दी गालियों का बेजा उपयोग…दीपा मेहता से यह उम्मीद ना थी। दूष शब्द बनाया था ना, गाली के रुप में। कपड़े का रंग-ढंग-माला-पिल्स भी एक खास आश्रम की संस्कृति की ओर इशारा कर रही थीं। यहां दर्शक तो रचनात्मकता की तलाश में था, कुछ नया देखने मिलता। हिटलर की तरह गैस चेंबर बना दिए गए…हे हिटलर की जगह, जय आर्यवृत…. आर्यवृत और दूषित को अलग करना अमिष की मेलुहा की याद आ गई…मैं अब यह किताब सच में पढ़ना चाहती हूं क्योंकि अकबर की ‘लैला’ पढ़ी नहीं इसलिए अमिष की मेलुहा ही याद आ रही थी। सब कुछ वैसा ही, श्रेष्ठी लोग के आराम के लिए प्रकृति के विनाश का शिकार गरीबों को बना देना। यही तो अमिष ने रचा था, माइथॉलाजी का हाथ थामकर।

कहानी का रुपांतरण वेब के दर्शक यह सोच इतना हल्का किया गया था कि माला जपते हुए मेरा जन्म ही मेरा कर्म है….श्लोक रच दिया गया। एक तरफ दूषित जैसा शब्द जिसे दूष भी कहा गया दूसरी तरफ इतना चलताऊ भाषा वाला श्लोक…सीरीज कुछ ही आगे बढ़ी तो हिटलर की प्योर ब्लड वाली थ्योरी सामने आने लगी। जिस तरह हिटलर प्योर ब्लड के लोग ही जर्मन में रहे यहां भी आर्यवृत्त को बसाया जा रहा था। ऐसा महसूस हो रहा था कोई हिटलर के घृणित सपने के साकार होने की कहानी कह रहा हो। झूठ बोलने या आज्ञा ना मानने वाली महिलाओं को मारने का तरीका भी तो हिटलर का गैस चैंबर ही था….कितना अटपटा है ना दो महिलाओं को मारने के लिए एक पिरामिड के आकार का गैस चैंबर एक पूरी सभा को उड़ाने के लिए छोटे में बल्व में जहरीली गैस…साइंस का तमाशा वो भी 27 साल आगे की सोच के साथ…पचता नहीं, दीपा मेहता के नाम पर तो बिलकुल भी नहीं। एक पत्रकार को मारने का तरीका या फिर हर तरह के संगीत और कला पर बंदिश…ऐसा लगा यहां कुछ हिस्सा तालीबानी संस्कृति का उधार ले लिया गया। पत्रकार की हत्या में तो …मुझे मेरे कुछ वरिष्ठ गोरे साथियों की शहादत याद आ गई। आर्यवृत्त का जो लोगो या टैटू बनाया गया वह भी हिटलर और द विंची कोड की याद दिला गया…यार कुछ तो नया करना था। प्रोजेक्ट बली…उफ्फ…

आश्रम के शुद्धीकरण में झूठन खिलाना या उस पर लोट लगाने के लिए मजबूर करना समझ आता है…पानी की कमी के लिए आपसी लड़ाई, यह श्राप तो हमने स्वयं अपनी आने वाली पीढ़ियों को दिया है। बारिश के रूप में जहर बरसना…सब कुछ…रोंगटे खड़े कर देने वाला है। मैं इस वेब सीरीज पर काफी कुछ लिखना चाहती हूं, लेकिन कहानी खुल ना जाए..इसलिए कलम को विराम दे रही हूं…हाँ एक दर्शक के रूप में निराश हूं….एक पाठक के रूप में किताब जल्द से जल्द पढ़ना चाहूंगी क्योंकि कहीं पढ़ लिया है वेबसीरिज किताब से काफी अलग है….

सीरिज में जो पसंद आया वह हुमा कुरैशी का किरदार था…एक अमीर सक्षम माँ जो पहले भी गुंड़ों के घर पर हमला करने का विरोध करती है…बाद में आश्रम में झूठन पर लोट लगाने – कचरे के ढेर में जाने के बाद भी रोने सिसकने की जगह हर मुसीबत से दो-दो हाथ करने का हौंसला रखती है औऱ अपनी बेटी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है…सबसे अच्छी बात…वो अपनी बेटी का शरीर ही नहीं दिमाग भी बचाना चाहती है, गलत कंडीशनिंग होने से। सच हर माँ को यही सिर्फ यही तो करना चाहिए…

वेब सीरीज में हुमा कुरैशी के अभिनय ने सच में बांधे रखा

:- श्रुति अग्रवाल @ FACEBOOK

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