Movie Review: अनुभव सिन्‍हा की आर्टिकल 15

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बारिश गिर रही है और कुछ दलित समुदाय के लोग एक झोपड़ी के नीचे खड़े होकर गीत गा रहे हैं। यह गीत अमीर और गरीब के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है, जो काफी अच्‍छा लगता है। एक नये अपर पुलिस अधीक्षक अयान रंजन की लालगांव में पोस्टिंग होती है और एक बस में दो किशोर लड़कियों के साथ गैंग रेप होता है।

यहां से शुरू होती है अनुभव सिन्‍हा की आर्टिकल 15। इस केस की छानछीन खुद अपर पुलिस अधीक्षक अयान रंजन करने लगते हैं। अयान रंजन दिल्‍ली और विदेश में पढ़ाई करने के बाद पिता की खुशी के लिए भारतीय पुलिस सेवा में आ गए।

पहली पोस्टिंग लालगांव में हो जाती है। लालगांव का नया अपर पुलिस अधीक्षक अयान रंजन अपनी प्रेमिका के साथ बतियाते हुए उसके आस पास चलने वाले घटनाक्रम को बयान करता रहता है, जो मानव अधिकार कार्यकर्ता है। रंजन की प्रेमिका कुछ ऐसा कहती है, जिससे अयान रंजन का ज़मीर जागता है और वो इस मामले में दिल से उतर जाते हैं।

अंत अयान रंजन व्‍यवस्‍था को साथ लेकर समाज और राजनीतिज्ञों को चमका देते हुए किस तरह अपने मिशन में सफल होते हैं? किस तरह दोषियों को सजा दिलाते हैं? इसके लिए आर्टिकल 15 देखनी होगी।

आर्टिकल 15 में दिए गए अधिकारों के संबंध में लोगों को जागृत करने के लिए अनुभव सिन्‍हा और गौरव सोलंकी पूरी कहानी बलात्कार और हत्‍या के इर्दगिर्द बुनते हैं। कहानी और संवादों के जरिये जनता का कुंभकर्णी नींद सो रहा चेतन जगाने की कोशिश की गई है। अच्‍छी बात तो यह है कि कोई भी बलात्‍कार का सीन रचे बिना अपनी बात कह जाते हैं।

जात पात के नाम पर होने वाले मतभेद के खिलाफ आवाज बुलंद करती अनुभव सिन्‍हा की आर्टिकल 15 अख़बार के पहले पन्‍ने पर छपी बलात्‍कार ख़बर, दलित स्वर्ण के मतभेदों पर लिखा संपादकीय और कुछ हिंदी फिल्‍मों का घसीटा पिटा मसाला है। इस फिल्‍म में बदायूं केस, जिसमें दो चचेरी बहनें पेड़ से लटकती हुई मिली थीं, को अपने तरीके से दिखाया गया है।

अनुभव सिन्‍हा का निर्देशन और आयुष्‍मान खुराना, सयानी गुप्‍ता, कुमुद मिश्रा व मनोज पाहा का अभिनय शानदार उम्‍दा है। फिल्‍म के संवाद बेहतरीन लिखे गए हैं। कुछ सीन बेहतरीन ढंग से फिल्‍माए गए हैं, जो प्रभावित करते हैं। हिन्‍दी सिनेमा प्रेमियों का ख्‍याल रखते हुए कॉमिक सीन भी शामिल किए गए हैं। लेकिन, अंत में निर्देशक और फिल्‍म संपादक दोनों की जल्‍दबाज नजर आते हैं। सब कुछ इतनी जल्‍दी में निपटाते हैं कि जैसे उनकी मुम्‍बई की ग्‍यारह चालीस की लास्‍ट लोकल छूट रही हो।

यदि इस फिल्‍म को कुछ अलग बनाता है, तो वह इसके संवाद, जो काफी गहरी चोट करते हैं और फिल्‍म के अंत में पुलिस अधिकारी और सीबीआई अधिकारी के बीच की बातचीत, जो तालियां बजाने पर मजबूर करती है। बाकी तो फिल्‍म के केंद्र में अपराध करने वाले राजनेता के गुर्गे और उनका साथ देने वाले निकम्‍मे पुलिस अधिकारी हैं, जो लगभग हर दूसरी या तीसरी हिंदी फिल्‍म में होते हैं।

फिल्‍म आर्टिकल 15 का मुख्‍य मकसद ‘धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा’ को याद दिलाना है।

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