नाटक मुगल—ए—आजम : द म्यूजिकल निर्देशक फिरोज अब्बास खान से विशेष बातचीत

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जैसा कि हम जानते हैं​​ कि नाटकों से प्रेरित फिल्मों का चलन जोरों पर है। पर, इस चलन के बीच लीक से हटकर करने की सोचने वाले मशहूर नाटक और फिल्म निर्देशक फिरोज अब्बास खान उत्कृष्ट हिंदी फिल्म मुगल—ए—आजम को नाटक का रूप देकर दर्शकों के सामने 1960 के दशक को पुन:जीवित कर रहे हैं।

बता दें कि ब्रॉडवे वर्ल्ड इंडिया से सम्मानित नाटक मुगल—ए—आजम : द म्यूजिकल 8 से 11 मार्च 2018 के बीच अहमदाबाद में खेला जाएगा। इस संबंध में अहमदाबाद पहुंचे नाटक निर्देशक फिरोज अब्बास खान से  FilmiKafe ने विशेष बातचीत की।

क्या आप को नाटक मुगल—ए—आजम : द म्यूजिकल आॅफर हुआ था?

मुझे किसी ने आॅफर ने की। मैं खुद यह करना चाहता था। मैंने इसलिए पहले एनसीपीए से बात की और फिर बाद में शापूरजी पल्लोनजी से बात की। उन्होंने कहा, हम आपको इसके राइट्स ही नहीं देंगे बल्कि भागीदारी भी रखेंगे। और आपको जैसा बनाना है, आप बनाइए। हमारी ओर से हर सुविधा दी जाएगी, बस मुगल—ए—आजम का नाम ऊंचा होना चाहिए।

क्या ​नाटक बनाने के लिए फिल्म पटकथा में बदलाव किए गए हैं?

थोड़ा सा बदलाव किया गया है, ताकि इसकी लंबाई कम की जाए। नाटक 2 घंटे 20 मिनट का है जबकि फिल्म लंबी थी। कुछ गाने काट दिए गए हैं, और दो गाने शामिल किए गए हैं। हालांकि, जो बेहद जरूरी यादें हैं, उनको बरकरार रखा हैं, और कुछ नयी यादों को शामिल किया गया। बाकी सब कुछ वैसा ही रखा है। असल में यह के आसिफ साहिब को श्रद्धांजलि है।

रीमेक बनाने का ख्याल क्यों नहीं आया, जबकि रीमेक और ऐतिहासिक फिल्मों का चलन जोरों पर है?

फिल्म तो हर कोई बना ही रहा है। नाटक भी तो किसी को करना चाहिए। मैं थिएटर को लेकर काफी जुनूनी हूं। मुझे लगता है कि यह जो फिल्म बनी है, इसको वापिस बनाना मुश्किल है। यह अपने आप में क्लासिक फिल्म है, इसलिए वो जैसी है, वैसी ही क्लासिक रहे, तो अच्छा है।

क्या नाटक में कलाकार फिल्म या टेलीविजन जगत से हैं?

नाटक में सभी कलाकार नये हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि मंच पर प्रस्तुति देते हुए कलाकार खुद गा रहे हैं। कुछ भी पहले से रिकॉर्ड किया हुआ नहीं है। इस नाटक को लाइव म्यूजिक प्रयोग ही तो इसको अलग बनाता है।

इसका सेट स्थापित करने में कितना समय लगेगा, क्योंकि अहमदाबाद में इतना भव्य सेट नहीं है?

इसका सेट तैयार करने में आम तौर पर दस से बारह दिन लगते हैं क्योंकि भारत हर जगह थिएटर तो मुहैया नहीं हो सकते। इसके लिए तीन सौ लोगों की टीम आती है, जो एक एक चीज पर बड़ी बारीकी से काम करती है। उसके बाद कई दिन तक मंच पर रिहर्सल का आयोजन भी किया जाएगा।

पहला शो कहां हुआ, और अब तक कितने शो हो चुके हैं?

इसका पहला शो मुम्बई स्थि​त एनसीपीए में किया था। इसके अब तक 96 शो हो चुके हैं और दिल्ली में नाटक 100 शो का कारवां पूरा कर लेगा, जो एक फरवरी से शुरू होने जा रहा है। यहां बताना चाहूंगा कि दिल्ली और अहमदाबाद में 80 से 100 के बीच में कलाकार नाटक का हिस्सा बनेंगे जबकि मुम्बई में कलाकारों की संख्या इससे आधी थी।

फिरोज खान से ​फिरोज अब्बास खान होने के पीछे कोई विशेष वजह?

जब मैंने गांधी माय फादर बनायी। उस समय मैं फिल्म जगत के लिए नया था जबकि थिएटर में हर कोई मेरे नाम से परिचित था। जब लोग इंटरनेट पर मेरा नाम सर्च करते तो अभिनेता फिरोज खान के कारण उनको उलझन का सामना करना पड़ा था। यह बात मेरे साथ काम करने वाले कुछ लोग मेरे ध्यान में लेकर आए। उनकी सलाह पर मैंने अपने नाम में मिडल नेम शामिल किया। इसका मकसद इतना ही था कि लोगों को परेशानी या उलझन न हो।

आप टेलीविजन और वेब सीरीज की ओर नहीं गए, जबकि हर कोई इसको करना चाहता है, कोई विशेष वजह?

मैं टेलीविजन के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं जैसा धारावाहिक निर्देशित कर चुका हूं, जो मैंने खुद ही लिखा था। मेरे लिए, टेलीविजन पर जो भी काम है, जब तक उसका सामाजिक प्रभाव न हो, मैं टेलीविजन के लिए काम करना नहीं चाहता। मैं कुछ भी कर सकती हूं सीरियल परिवार नियोजन और महिला शक्तिकरण समेत महिलाओं से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करता है, इसलिए मैंने मैं कुछ भी कर सकती हूं किया। भारत के मनोरंजन टेलीविजन ने महिलाओं का जितना नुकसान किया है, शायद मैं नहीं सोचता कि किसी अन्य चीज ने किया होगा। आप देखिये, सास बहू के सीरियल, किस तरह का व्यवहार होता है। कभी वो मच्छर बन रही है, कभी नागिन बन रही है, जिस तरीके से वो बर्ताव करती है, हमारे ​जितने भी ​पिछड़े हुए विचार हैं, जो हमारे टेलीविजन चैनलों पर हैं। मैं कुछ भी कर सकती हूं ने साबित कर दिया है कि सास बहू के सीरियल बनाने का कोई मतलब नहीं है। भारत में सबसे ज्यादा देखा गया है। गुजराती में भी आता हैं। 13 भाषाओं में प्रसारित हो चुका है।

वैसे तो मुगल—ए—आजम : द म्यूजिकल की तारीफ बड़े बड़े सितारों ने की, लेकिन, आपके लिए जो सबसे अहम प्रतिक्रिया है, वो किसी की है?

मुझे खुशी है कि जो भी सिने जगत से जुड़े लोग ​नाटक देखने आए, सभी को मेरा काम पसंद आया। मैं उनको एक बेहतर नाटक दे सका। यदि खास प्रतिक्रिया की बात करूं तो मेरे लिए शायद ऋषि कपूर और रणधीर कपूर की प्रतिक्रिया ज्यादा महत्वपूर्ण थी क्योंकि उनके दादा पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म मुगल—ए—आजम में अकबर का किरदार अदा किया था।

कुलवंत हैप्पी/अहमदाबाद