तो क्या संजय लीला भंसाली को ऐसे पद्मावत बनानी चाहिए थी?

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कहानी के अंत में मरते हुए नायक नायिकाओं को बड़े पर्दे पर दिखाने के लिए उत्सुक रहने वाले संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म पद्मावत रिलीज हो चुकी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि फिल्म पद्मावत को सिनेमा घरों तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है।

दिलचस्प बात तो यह है कि रिलीज से पहले राजपूत समाज इस बात को लेकर विरोध कर रहा था कि रानी पद्मिनी को खिलजी के ख्वाब में दिखाना गलत है, क्योंकि खिलजी ने रानी को देखा नहीं था। अब रिलीज के बाद फिल्म पद्मावत को लेकर एक नयी बहस शुरू हो चुकी है कि इसमें सति प्रथा का महिमामंडन किया गया है।

तनु वेड्स मनु चर्चित अभिनेत्री स्वरा भास्कर से लेकर कुछ जाने माने फिल्म समीक्षक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत की आलोचना केवल इसलिए कर रहे हैं कि इसमें सति प्रथा का गुनगान किया गया है।

शायद, सति प्रथा की महिमा से परेशान फिल्म समीक्षक और अभिनेत्री यह सोच रहे हैं कि फिल्म पद्मावत देखने के बाद भारत में सती प्रथा एक बार फिर से जागृत हो उठेगी। अगर सिनेमा इतना ही प्रभाव छोड़ने वाला होता था, तो अक्षय कुमार की टॉयलेट एक प्रेम कथा के बाद भारत में घर घर शौचालय होता। सलमान खान की पहली फिल्म बीवी हो तो ऐसी के बाद सास बहू का युद्ध खत्म हो जाता और हम साथ साथ हैं देखने के बाद रिलायंस समूह दो हिस्सों में कभी न बंटता।

इतना ही नहीं, सनी देओल की गदर के बाद पाकिस्तान भारत की ओर आंख उठाकर भी न देखता और अक्षय कुमार की बेबी, सैफ अली खान की फैंटम के बाद पाकिस्तान में फलने फूलने वाला आतंकवाद भी किसी कोने में छुपाकर बैठ जाता। रजनीकांत की शिवाजी द बॉस के बाद काले धन वालों का भारत में काल पड़ जाता और कमल हासन की हिंदुस्तानी देखने के बाद कोई भी भ्रष्टाचार करने से डरता।

चलो, छोड़ो, जाने दो। मूल बात की ओर लौटते हैं। जहां पर फिल्म पद्मावत में सति प्रथा को लेकर सवाल उठे जा रहे हैं। पहली बात तो यह देखनी और सोचनी होगी कि फिल्म किसी काल खंड पर आधारित है।

यदि फिल्म उस काल खंड पर आधारित है, जिस काल खंड में सति प्रथा अपने चरम पर थी तो उस काल खंड में 21वीं सदी की तनुजा त्रिवेदी उर्फ तनु तो ठूंसी नहीं जा सकती, जो अपने पति को पागल साबित करके पागलखाने में बंद करवाकर, खुद मायके में मटरगश्ती और मौज मस्ती में विलीन हो जाती है।

वैसे भी चर्चित कहानी के अनुसार रानी ​पद्मिनी ने जौहर किया था और ऐसे में रानी पद्मिनी को खुंखार शासक खिलजी के साथ लोहा लेते हुए दिखाते तो रानी पद्मिनी का इतिहास ही बदल जाता और आने वाले समय में इतिहासकार रानी पद्मिनी पर एक दो शब्द लिखने के साथ यह भी लिखते, इस बात को लेकर विरोधाभास था।

संजय लीला भंसाली ने मलिक मुहम्मद जायसी की महा रचना पद्मावत से प्रेरित होकर फिल्म पद्मावत की रचना की है। ऐसे में संजय लीला भंसाली ने उन बातों पर ध्यान केंद्रित किया, जो उस समय खंड में महत्वपूर्ण थीं, भले ही आधुनिक भारत में अपराध हैं।

मुझे लगता है कि संजय लीला भंसाली को फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा से प्रशिक्षण लेना चाहिए था, ताकि संजय लीला भंसाली राजपूतों के अलावा उन लोगों को भी संतुष्ट करवा पाते, जो सति प्रथा के गुनगुान से परेशान हो उठे हैं।

राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म शैली के अनुसार फिल्म पद्मावत बीते हुए कल और वर्तमान में अपना सफर तय करती। एक में सति प्रथा का गुनगान होता, तो दूसरे में दुनिया जाए भाड़ में, अपनी जिंदगी अपने नियम।

कुलवंत हैप्पी
me.yuvarocks@gmail.com