फिल्म समीक्षा कैदी बैंड : ढीली ढाली कहानी ने मारा डाला बेहतरीन आइडिया

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जेलों में केवल गुनाहगार ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे कैदी भी होते हैं, जो बिना किसी गुनाह के सजा पाते हैं, या कुछ ऐसे लोग जिनका गुनाह तो छोटा है, लेकिन, जर्जर व्यवस्था के चलते अदालतों से तारीख पर तारीख मिलने के कारण उनकी सजा कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती। इस कड़वी सच्चाई की पृष्ठभूमि पर रची गई है कैदी बैंड की कथा।

कैदी बैंड की शुरूआत मचल लालंग के परिचय से होती है, जो बिना किसी गुनाह के 54 सालों तक जेल में रहा। एक राजनेता जेलर दविंदर धुलिया से जेल के अंदर कैदी बैंड बनाने की बात कहते हैं। इस कैदी बैंड में केवल अंडर ट्रायल कैदियों को शामिल किया जाता है और जेल के अंदर स्वतंत्रता दिवस पर एक रंगारंग प्रोग्राम आयोजित होता है, जहां यह कैदी अपनी प्रस्तुति देते हैं।

इसके बाद कैदियों का सेनानीज बैंड मशहूर हो जाता है। इस बैंड के सारे सदस्य युवा हैं, और उनमें से ज्यादातर बेगुनाह हैं। बैंड के सदस्य रिहा होने का ख्वाब देखने लगते हैं। लेकिन, जेलर प्रमोशन के प्रलोभन में आकर उनको पेशी पर जाने से रोकने लगता है, ताकि उनको जेल के अंदर रखकर उनके गाने यूट्यूब पर प्रसारित किए जाएं।

इस दौरान बैंड सदस्य जेल से भागने की योजना बनाते हैं और बैंड सदस्य अपनी योजना में सफल होते हैं। हालांकि, कुछ बैंड सदस्य पुलिस पकड़ में आ जाते हैं। बैंड के गायक संजू और बिंदू अपने मकसद में कामयाब होते हैं।

संजू और बिंदू की सफलता बैंड के दूसरे सदस्यों के लिए रिहायी का जरिया बनती है। लेकिन, यह होता कैसे है, और उनको भागना क्यों पड़ता है जानने के लिए कैदी बैंड देखिये।

कैदी बैंड देखने के बाद लगता है कि निर्देशन हबीब फैजल ने जमीनी स्तर पर काम नहीं किया। हबीब फैजल फिल्म में रॉक आॅन का फ्लेवर, लव स्टोरी टच और सामाजिक समस्या को रखने की कोशिश में पूरी तरह उलझकर रह गए।

फिल्म की पटकथा में कसावट की जरूरत महसूस होती है क्योंकि 2 घंटे की अवधि वाली यह फिल्म बोझ लगने लगती है। कहानी बहुत ढीली ढाली है, जो दर्शकों में जरा सा रोमांच बनाए रखने में असफल रहती है। कैदी बैंड की जेल जेल कम पिकनिक स्पॉट अधिक मालूम पड़ती है।

​नवोदित अभिनेता आदर जैन और अन्या सिंह ने अपने किरदारों को बड़ी खूबसूरती से अदा किया है। हालांकि, सचिन पिलगांवकर के किरदार को और बेहतर तरीके से लिखने की जरूरत थी। फिल्म में दूसरे कलाकारों का काम भी ठीक ठाक था।

इसके अलावा फिल्म कैदी बैंड का आई अम इंडिया और हलचल गाने कहानी के माहौल के हिसाब से बेहतरीन लगते हैं। फिल्म कैदी बैंड की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है।

कुल मिलाकर कैदी बैंड एक औसत दर्जे की फिल्म है, जो कहना तो बहुत कुछ चाहती है, लेकिन, उसको बयान करने में पूरी तरह असफल रहती है।

रेटिंग की बात की जाए तो हबीब फैजल निर्देशित फिल्म कैदी बैंड को पांच में से 2 स्टार दिए जा सकते हैं, केवल अभिनय और म्यूजिक के कारण।

कुलवंत हैप्‍पी