राज ठाकरे की जीत तो है, लेकिन यह करण जौहर की हार नहीं

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देशभक्‍ति के नाम पर देश के नागरिकों को धमकाना। धमकियां देकर अपने देश के व्‍यवसाय को प्रभावित करना। देशद्रोह के दायरे में आता है या देशभक्‍ति के दायरे में, इस बात को समझना होगा। मेरे हिसाब से देशद्रोह के दायरे में आना चाहिए क्‍योंकि व्‍यवसाय से देश के नागरिकों को रोजगार मिलता है, औरों सरकारों को कर, राजनीतिक पार्टियों को चुनावों में फंड मिलता है।

यदि देशभक्‍ति के नाम पर देश के व्‍यवसायियों और फिल्‍म निर्माताओं को धमकाना देशभक्‍ति है तो यकीनन किसी को भी देशभक्‍ति के नाम पर धमकाया जा रहा है, जो कानूनन जुर्म नहीं होगा। यदि हम राज ठाकरे के मामले में पर दृष्‍टि डालें तो।

किसी को भी जान से मारने की धमकी देना या धमकाना देश के कानून के अनुसार गुनाह है। लेकिन, देश का निकम्‍मा, खोखला, अवसरवादी सिस्‍टम इस बात को समझने में नकारा हो चुका है।

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राज ठाकरे की भभकियों के समाने सरकार का घुटनों के बल आ जाना करण जौहर की नहीं बल्‍कि सिस्‍टम की हार है। करण जौहर की मजबूरी है, उसके करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं। कोई भी कारोबारी अपने पैसे को बचाने के लिए बुरे वक्‍त में गधे को भी बाप कहेगा।

करण जौहर का रोना समझ आता है। लेकिन, महाराष्‍ट्र सरकार का राज ठाकरे के संगठन के कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई न करना समझ से बाहर है, जो खुलेआम व्‍यवसायियों को धमका रहे हैं।

सरकार को भूलना नहीं चाहिए कि देश के विकास में लगने वाला पैसा आम आदमी का है, जो व्‍यवसायों से होते हुए सरकार तक कर के रूप में पहुंचता है। यदि देश के व्‍यवसायी देश में सुरक्षित नहीं होंगे तो विदेशी निवेशकों को यहां लाने का विश्‍वास सरकार कहां से लाएगी।

जनवरी में पठानकोट में आतंकवादी हमला हुआ। इस हमले में भी कथित तौर पर पाकिस्‍तान का हाथ था। इसमें भी देश के जवान शहीद हुए थे। उसके कुछ महीनों बाद कपूर एंड सन्‍स रिलीज हुई थी, जिसमें फवाद खान नजर आए थे। उस समय तो किसी ने बायकॉट की धमकी नहीं दी थी।

Kapoor and sonsएक अन्‍य बात 2015 के दिसंबर महीने में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकाएक पाकिस्‍तान की यात्रा कर देशवासियों को चकित कर दिया था और उसके बाद पठानकोट हमला हुआ, किसी ने नरेंद्र मोदी का बायकॉट तो नहीं किया, और भारत सरकार पर पाक से कारोबारी रिश्‍ते न रखने के लिए भी किसी ने दबाव नहीं बनाया।

जो मुम्‍बई में राष्‍ट्रभक्‍ति की झूठा चोला पहनकर देश की जनता को परेशान करते हैं, बिहारी के नाम पर, कभी यूपी के भैया के नाम पर। वो देशभक्‍त ताज होटल के हमले के वक्‍त कौन सी बिलों में घूस गए थे, घरों से क्‍यों नहीं निकले अपने गुर्गों को लेकर। सच तो यह है कि यदि गली के गुंडों को मीडिया राजनेताओं सा कवरेज देगा तो गुंडों का राजनीति में, दबंगगिरी में रस बढ़ेगा।

bombay-velvetयदि देश में बदलाव चाहिए तो देश के हर जिम्‍मेदार पक्ष को अपनी जिम्‍मेदारी समझनी होगी। अनाप शनाप को बढ़ावा देने से बेहतर होगा, देश के अच्‍छे युवाओं को ब्रेकिंग न्‍यूज बनाओ। सरकार को झुकना है तो बेरोजगारों के प्रदर्शनों के आगे झुके, झुकना है तो कर्मचारियों की अनशन, धरना प्रदर्शन के सामने झुके।

चलते चलते…
वर्ष 2009 में करण जौहर निर्मित और रणबीर कपूर अभिनीत फिल्‍म वेक अप सिड रिलीज हुई, जिसमें मुम्‍बई की जगह बॉम्‍बे शब्‍द का उच्‍चारण किया गया था, जिस पर राज ठाकरे ने कड़ा स्‍टैंड लेते हुए शब्‍द को मुम्‍बई करने की हठ पकड़ी थी। लेकिन, हैरानी इस बात की होती है कि वर्ष 2015 में करण जौहर और रणबीर कपूर अभिनीत फिल्‍म बॉम्‍बे वेलवेट को बिना किसी एतराज के पूरे भारत में रिलीज कर दिया जाता है। यह बात साबित करती है कि राज ठाकरे देशभक्‍त नहीं, मौकापरास्‍त हैं।

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