संगीत के जरिये जाति बंधन तोड़ती गिन्नी माही

0
394

जलंधर। वह केवल सात साल की थी, जब उसने गाना शुरू कर दिया था और एक दशक बाद वह अपने समुदाय के बीच स्टार बन गई थी।

यह कहानी है पंजाब की जलंधर निवासी 17 साल की गिन्नी माही की, जिसे देश की तथाकथित जाति-व्यवस्था में सबसे निचली जातियों में से एक से होने का कोई मलाल नहीं है। उसने कभी इसे छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि इसे अपने संगीत से जगजाहिर किया और जाति बंधन को तोड़ने का प्रयास किया।

गिन्नी का संगीत वीडियो ‘डेंजर चमार’ साल 2015 में जारी हुआ था, जिसने यूट्यूब पर खूब सुर्खियां बटोरी थी। गिन्नी का कहना है कि इस वीडियो के जरिये उसने समाज में सदियों से व्याप्त जाति-व्यवस्था की जकड़न को तोड़ने की कोशिश की।

गिन्नी अनुसूचित जाति से आती हैं और उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि वह चमार जाति से हैं, जिसे जाति विभाजित समाज में तब तक निम्न समझा जाता रहा, जबतक कि संविधान ने इस पर प्रतिबंध न लगा दिया।

गिन्नी के अनुसार, गीत का शीर्षक ‘डेंजर चमार’ रखने का विचार उनके मन में कॉलेज के दिनों में ही आया था, जब उनके दोस्तों ने उनसे उनकी जाति पूछी थी।

15वीं सदी के संत रविदास की अनुयायी गिन्नी के अनुसार, “(जाति विभाजन पर) गीत रचना का खयाल तब आया था जब मुझे कॉलेज के दिनों में मेरी जाति पूछी गई थी। जब मैंने कहा कि मैं चमार हूं तो एक लड़की ने कहा था कि चमार बहुत खतरनाक होते हैं।”

बकौल गिन्नी, अपने गीत के जरिये उसने यह बताने की कोशिश की कि चमार, एक ऐसा शब्द जिसे कानून के तहत अपमानजनक समझा जाता है, ‘अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए कुछ भी न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते हैं और इस दृष्टि से वे खतरनाक हैं।’

वह रविदासिया समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, जिसके पंजाब के दोआब क्षेत्र (सतलज और व्यास नदियों के बीच सर्वाधिक उर्वर क्षेत्र) में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। इस समुदाय के लोग अनुसूचित जाति का हिस्सा हैं। संत रविदास पंजाब में दलित आइकॉन के रूप में देखे जाते हैं।

वीडियो में गिन्नी को आधुनिक गायन सनसनी के रूप में जीन्स तथा लेदर की जैकेट के साथ युवाओं के साथ दिखाया गया है।

ginni mahi

स्वतंत्र भारत की संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर की प्रशंसक गिन्नी ने एक और गीत ‘फैन बाबा साहब दी’ गया है, जो देश में जाति विभाजन की खाई पाटने में ‘बाबा साहब’ के योगदान को दर्शाती है। अंबेडकर ‘बाबा साहब’ के रूप में जाने जाते हैं।

पंजाब के दलित समुदाय में गिन्नी ने अपने गीतों से खासी लोकप्रियता हासिल कर ली है। इस किशोरी गायिका ने अपने पहले अल्बम ‘गुरुनाम दी दीवानी’ के जरिये सोशल मीडिया पर जगह बनाई थी। उनका यह अल्बम 2015 में रिलीज हुआ था। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर प्रस्तुति के लिए उन्हें 30,000 रुपये तक मिलते हैं।

गिन्नी हालांकि केवल समुदायों से संबंधित गाने ही नहीं गाना चाहती, बल्कि उसकी महत्वाकांक्षा बॉलीवुड संगीत जगत में पाश्र्वगायिका के रूप में जगह बनाने की है, ताकि वह दर्शकों के एक बड़े वर्ग तक अपनी जगह बना सके। उन्हें भक्ति व सूफी संगीत पसंद हैं।

गिन्नी को संगीत के क्षेत्र में करियर बनाने में उनके अभिभावक राकेश तथा परमजीत कौर माही पूरा समर्थन व सहयोग दे रहे हैं।

-आईएएनएस/जयदीप सरीन