देखें या नहीं ? फिल्‍म अज़हर

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बालाजी मोशन पिक्‍चर्स की ‘अज़हर’ को पूरी तरह से पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की बायोपिक नहीं कह सकते, क्‍योंकि इसमें बहुत सारी बातें कल्‍पना से जन्‍मीं हैं। इस फिल्‍म को पूर्व कप्‍तान के जीवन से प्रेरित कह सकते हैं।

ब्‍लू और बॉस जैसी फिल्‍मों का निर्देशन कर चुके टोनी डिसूजा अज़हर बनाते हुए दुविधा में नजर आए, उनको समझ नहीं आया कि फिल्‍म को बायोपिक बनाएं या कमर्शियल। इस फिल्‍म को बायोपिक और कमर्शियल की खिचड़ी कह सकते हैं।

लेखक रजत अरोड़ा ने असल जिन्‍दगी के किरदारों को कल्‍पना के साथ पेश करने का प्रयास किया है। भारत के सबसे विवादित और सफलतम कप्‍तान मोहम्‍मद अजहरुद्दीन की कहानी को कुछ घंटों में कहना मुश्‍किल है, क्‍योंकि अजहर की असल जिन्‍दगी बहुत अधिक उतार चढ़ावों से भरी हुई है।

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फिर चाहे हैदराबाद के मध्यवर्गीय परिवार से भारतीय क्रिकेट टीम में स्‍थान पाना। शोहरत के बाद अभिनेत्री से दूसरा विवाह करना, सफल कप्‍तानी के साथ बदनामी का कलंक हो।

हालांकि, फिल्म के जरिये अज़हर के जीवन के कुछ अनछुए पहलू भी सामने रखे गए हैं, जो कहानी में थोड़ी सी रोचकता लाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि फिल्‍म की शुरूआत काफी बेहतरीन है, मगर बाद में, धीरे धीरे कपड़े की तरह कहानी खस्‍ता होने लगती है।

अभिनय की बात करें तो इमरान हाशमी ने पूरा कोशिश की है कि अज़हर के किरदार के साथ इंसाफ किया जाए, मगर, कहीं न कहीं इमरान हाशमी की सीमित प्रतिभा आड़े आई है। प्राची देसाई दर्शकों को प्रभावित करती हैं, हालांकि, उनको कम समय मिला है।

अन्‍य कलाकारों के बारे में कुछ ना ही कहा जाए तो बेहतर होगा। असल बात तो यह है कि टोनी डिसूजा और रजत अरोड़ा ने एक बेहतरीन विषय होने के बावजूद एक महान फिल्‍म बनाने का मौका गंवा दिया है।

टोनी डिसूजा के पास ब्‍लू और बॉस में अच्‍छी कहानियां थी, मगर, निर्देशन में कमजोर पकड़ के कारण दोनों फिल्‍मों का हश्र तो हम सब जानते हैं।

हालांकि, यह हमारी अपनी निजी राय है, जो सभी पर लागू नहीं होती, क्‍योंकि हर किसी का अपना अपना नजरिया होता है।

हमारी तरफ से फिल्‍म अज़हर को डेढ़ स्‍टार दिया जाता है।